गढ़कुण्डार किला : देश का सबसे रहस्यमयी और डरावना किला जहां गुम हो गई पूरी बरात
हमारे देश में तमाम ऐसे किले हैं जो काफी रहस्यमयी हैं। ये किले इतने रहस्यमयी हैं कि आज तक उनके इतिहास के बारे में भी कोई ठोस जानकारी नहीं हासिल की जा सकी है। आज हम आपको एक ऐसे ही किले गढ़कुंडार की कहानी बताने जा रहे हैं जिसे सबसे ज्यादा रहस्यमयी माना जाता है। गढ कुंडार का दुर्ग और उसके भग्नावशेष गढ़-कुंडार मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित एक गाँव है। इस गाँव का नाम यहां स्थित प्रसिद्ध दुर्ग (गढ़) के नाम पर पड़ा है। यह किला उस काल की न केवल बेजोड़ शिल्पकला का नमूना है बल्कि उस खूनी प्रणय गाथा के अंत का गवाह भी है, जो विश्वासघात की नींव पर रची गई थी। माना जाता है कि यह किला 11वीं सदी में बना था। यह किला पांच मंजिलाकर है, इस किले में तीन मंजिल तो ऊपर हैं, जबकि दो मंजिल जमीन के नीचे हैं।
गढ़कुंडार का किल 11 वीं शताब्दी में जुझौती प्रदेश की राजधानी था। गढ़कुंडार उस समय उत्तर भारत का एक बड़ा शहर था। सन 1182 ई. में महाराज खेतसिंह खंगार ने चंदेलों के समय से आबाद इस सैनिक मुख्यालय के स्थान पर अजेय दुर्गम दुर्ग का निर्माण करवाया था। यहां चंदेलों, बुंदेलों और खंगार जैसे कई शासकों का शासन रहा। यह किला सुरक्षा की दृष्टि से बनवाया गया एक ऐसा बेजोड़ नमूना है, जो लोगों को भ्रमित कर देता है। आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि यह किला इस तरह बनाया गया है कि यह चार-पांच किलोमीटर दूर से तो दिखता है, लेकिन नजदीक आते-आते यह दिखना बंद हो जाता है।
इस किले की एक और हैरान करने वाली बात यह है कि जिस रास्ते से किला दूर से दिखता है, अगर उसी रास्ते से आप आएंगे तो रास्ता किले की बजाय कहीं और ही चला जाता है, जबकि किले के लिए जाने वाला दूसरा रास्ता है। आक्रमण की दृष्टि से यह पूर्ण सुरक्षित है अतः इसे दुर्गुम दुर्ग कहा जाता है। यह किला उत्तर भारत की सबसे प्राचीन इमारत है। यह पहाड़ों की ऐसी ऊंचाई पर बना है कि तोपों के गोले इसे नहीं तोड़ सकते थे, लेकिन इस किले से बहुत दूर तक दुश्मन को देखकर उसे आसानी से मारा जा सकता था। महल के नीचे के तल से एक सुरंग महल के बाहर कुएं तक जाती है इस कुएं को जौहर कुआं भी कहते हैं। जब खंगार राजा और मोहम्मद तुगलक के बीच लड़ाई हुई और कुंडार के राजा युद्ध में मारे गए तब राजमहल की रानियों और राजकुमारी केशर ने इसी कुएं में आग जलाकर अपने प्राणों की आहुति दी थी। गढ़कुंडार किले का संबंध बुंदेला, चंदेल और खंगार राजाओं से रहा है, परंतु इसके पुनर्निर्माण और इसे नई पहचान देने का श्रेय खंगारों को जाता है।
गढक़ुंडार के किले की गिनती भारत के सबसे रहस्यमयी किले में होती है। किले के आसपास के लोगों का कहना है कि काफी समय पहले यहां पास के ही गांव में एक बरात आई थी। बरात यहां किले में घूमने आई। घूमते-घूमते वो लोग बेसमेंट में चले गए, जिसके बाद वो रहस्यमयी तरीके से अचानक गायब हो गए। उन 50-60 लोगों का आज तक पता नहीं चल सका। इसके अलावा भी किले में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिसके बाद किले के नीचे जाने वाले सभी दरवाजों को बंद कर दिया गया।
गढ़कुंडार किला ऐसी भूल-भुलैय्या की तरह है कि अगर आपको जानकारी न हो तो इसमें अधिक अंदर जाने पर कोई भी दिशा भूल सकता है। किले के अंदर अंधेरा रहने के कारण दिन में भी यह डरावना लगता है। कहा जाता है कि इस किले में एक खजाना भी छिपा हुआ है। इतिहास के जानकारों का कहना है कि यहां के राजाओं के पास सोने-हीरे, जवाहरातों की कोई कमी नहीं रही। इन राजाओं ने यहीं खजाना छिपा रखा था। कई लोगों ने इस खजाने को खोजने की कोशिश की मगर वे जिंदा नहीं बच सके।
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